अनकही



माँ अब इतनी दूर तू क्यों है 

आज जो चाहा, साथ में हो तू..
मेरी हर एक बात में हो तू..
ढूँड रही हैं आँखे मेरी..
पर अब थक के, चूर तू क्यों है.. 
माँ अब इतनी दूर तू क्यों है, 

तुझसे ही मेरी उत्पत्ति..
तुझसे से ही मेरा जीवन है.. 
टूट रही हैं साँसे मेरी..
फिर इतनी मजबूर तू क्यों है.. 
माँ अब इतनी दूर तू क्यों है,

उस घर अब मैं, कैसे जाऊ.. 
किसमे खोजूं, किसमे पाऊं..
जीवन की एक ही आशा है..
तू ही मेरी अभिलाषा है.. 
तुझ से जुड़ के, तुझको खोना.. 
ऐसा ये दसतूर ही क्यों है.. 
माँ अब इतनी दूर तू क्यों है. 

(प्रशांत)

हर बिखरे लम्हों में मुझको 



हर बिखरे लम्हों में मुझको, अब बस तेरी ही चाहत है..
मिलों तक पसरे सन्नाटे में अब बस तेरी ही आह्ट है..
तू पास ना हो तो सांस ना हो , तू दूर हुआ तो खालीपन..
तू साथ ना हो तो आस नहीं , तेरी ख़ामोशी है सूनापन..
इस ढलती बिलखती आँखों को, अब बस तुझसे ही राहत है..
हर बिखरे लम्हों में मुझको अब बस तेरी ही चाहत है,

हम सोच में थे क्या होता है , जिसे प्यार यहाँ सब केहते हैं..
वो बात क्यों इतनी ख़ास है की, हर दर्द यहाँ सब सेहते हैं..
केहते हैं ये दिल की बात अलग , यहाँ गहरे हैं ज़ज्बात अलग..
ढूंडो तो सब कुछ मिलता है, यहाँ होते हैं दिन रात अलग..
तुझसे मिलके अब जाने क्यों, फिर जीने को जी करता है..
दिल के उखड़े पैबन्दों को, फिर सीने को जी करता है..
होती है मेरी हर सुबह नयी, हर शाम को तेरी हसरत है..
हर बिखरे लम्हों में मुझको अब बस तेरी ही चाहत है,

कुछ बात जो मेरे दिल में हो , क्यों तुझको बयाँ हो जाती है..
मैं रोक भी गर लू दिल को तो, आँखों से जुबां तक आती है..
तू इतना मेरे पास है क्यों, क्यों हु मैं तुझसे दूर नहीं..
तेरी ही तरफ क्यों बढ़ता हु , क्यों कोई और  मनज़ूर नहीं..
तेरी सबसे है क्यों बात अलग, क्यों लगे मुझे दिन रात अलग,
तेरे मुस्काते  उस चेहरे से, अब हसने को जी करता है ..
जो बस्ती पीछे छुट गई,वहाँ बसने को जी करता है..
तुझसे ही जुडी है सांस मेरी, तुझसे ही  यहाँ अब बरकत है..
हर बिखरे लम्हों में मुझको अब बस तेरी ही  चाहत है,

है याद मुझे वो रात अभी, जब तेरे कितने पास थे हम.. 
कुछ जुदा नहीं था हममे तब, बस एक ही तो एहसास थे हम.. 
एक रात में जैसे जुग बीता, तुझे खुद से ज्यादा जान गए..
कहते थे जिसे सब पागलपन, आखिर में हम भी मान गए.. 
तू सबसे जुदा क्यों लगता है, क्यों तेरी है औकात अलग.. 
वो वक़्त तो कबका बीत गया, वो लम्हा पीछे छूट गया..

हम आज भी गुम से बैठे हैं, क्यों ऐसे ये हालात  अलग, 

अब तुझको पा कर खोने का,  एक ज़िक्र भी ग़ाली लगता है.. 
हम लाख घिरे हो भीड़ में भी, पर रस्ता खाली लगता है.. 
सबकुछ खोके तुझको पाना , क्यों जागी ऐसी फितरत है.. 
हर बिखरे लम्हों में मुझको अब बस तेरी ही चाहत है..
मिलों तक पसरे सन्नाटे में अब बस तेरी ही आहट है.. 

(प्रशांत)

किसी की तरह से, किसी की वजह से

किधर की है चाहत, किधर जा रहे हैं..
है ख्वाहिश किसी की, किसे पा रहे हैं ..
है चलना ज़रूरी, चले जा रहे हैं..
थी चाहत के उगते , ढले जा रहे हैं.. 
किसी की तरह से, किसी की वजह से,

थे किस्से अधूरे , जो करने थे पूरे.. 
नए और किस्से, लिखे जा रहे हैं.. 
ना मंजिल वहाँ है, ना कोई है साथी.. 
हम अभ भी सफ़र में, बढे जा रहे हैं..
है किसकी ये ख्वाहिश, ये किसकी रज़ा है
है कोई ये साजिश, या कोई सज़ा है 
गर मानो इबादत, किये जा रहे हैं  
किसी की तरह से , किसी की वजह से,  

है साँसे थमी सी , जिए जा रहे हैं..
जो पीना  नहीं था , पीए जा रहे हैं.. 
जो पहले था सबकुछ, अब वैसा नहीं है.. 
जो अब है यहाँ, उस जैसा नहीं है.. 
है जीना भी आदत , जीए जा रहे हैं.. 
किसी की तरह से, किसी की वजह से.

(प्रशांत)

© 2013 Prashant Srivastava

Comments

  1. Hindustani mein to aur bhi "tarun" lagta hai yeh Friday blogger!

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  2. Finally the wait is over...Thanks for sharing your beautiful poems Prashant..Specially the second one "Har bikhre lamhe me mujhko..ab bus teri he chahat hai…milo tak pasre sanaate me..ab bus teri he aahat hai.."
    Now m eagerly waiting for your new set of blogs.. :) :)

    PS: I love the new look and feel f your blog page..;)

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  3. yeah!!!! it has return....so good to see the new makeover..... the poem Maa ab itni dur kyun hai....is awsome... your writing skills are too good...it always touches our heart...
    thanks for sharing your wonderful Masterpiece....
    your avid followers are waiting for your new blog

    plzzzz keep writing :) :)

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  4. Wah, sundar Prashaant, Bahut hi achha....

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  5. Wah, sundar Prashaant, Bahut hi achha....

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