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Showing posts from July, 2013

अनकही

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माँ अब इतनी दूर तू क्यों है  आज जो चाहा, साथ में हो तू.. मेरी हर एक बात में हो तू.. ढूँड रही हैं आँखे मेरी.. पर अब थक के, चूर तू क्यों है..  माँ अब इतनी दूर तू क्यों है,  तुझसे ही मेरी उत्पत्ति.. तुझसे से ही मेरा जीवन है..  टूट रही हैं साँसे मेरी.. फिर इतनी मजबूर तू क्यों है..  माँ अब इतनी दूर तू क्यों है, उस घर अब मैं, कैसे जाऊ..  किसमे खोजूं, किसमे पाऊं.. जीवन की एक ही आशा है.. तू ही मेरी अभिलाषा है..  तुझ से जुड़ के, तुझको खोना..  ऐसा ये दसतूर ही क्यों है..  माँ अब इतनी दूर तू क्यों है.  (प्रशांत) हर बिखरे लम्हों में मुझको  हर बिखरे लम्हों में मुझको, अब बस तेरी ही चाहत है.. मिलों तक पसरे सन्नाटे में अब बस तेरी ही आह्ट है.. तू पास ना हो तो सांस ना हो , तू दूर हुआ तो खालीपन.. तू साथ ना हो तो आस नहीं , तेरी ख़ामोशी है सूनापन.. इस ढलती बिलखती आँखों को, अब बस तुझसे ही राहत है.. हर बिखरे लम्हों में मुझको अब बस तेरी ही चाहत है, हम सोच में थे क्या होता है , जिसे प्यार यहाँ सब केहते हैं.. वो बात क्यों इतनी ख़ास है की, हर दर्द