Straight from the MS Word..Depressed thoughts Compressed Words
It's when you have lot inside and difficult to hide...sharing that with some one..is against your pride..we get a resort...to pen it down...to move away..from one to another..to drift away from wings to feather...we take a stride to pen it down..to drift away from wave to tide..."Prashant"
Sharing all what I have written, you can call it a poetry or shaayari..or whatever you think is fit..."For me they are expressions...which were inside, they travelled as a wave...and I simply captured them in words..so that they do not become tide.."पराश "
1) मुझको काफ़िर तो ख़ुद को ख़ुदा केहते हैं , होते हैं ख़ुद से दूर और मुझको जुदा केहते हैं ,
अभी तो एक शाम ही बीती है तेरे शहर में "पराश" , लोग अभी से मुझे गुमशुदा कहते हैं।
2) इस शहर की एक खासियत है "पराश" , मुसाफिर कोई नहीं रहता यहाँ आने के बाद ;
लोग मिलते हैं गले लग के बड़ी तसल्ली से यहाँ , सूरते हाल पूछता नहीं कोई तेरे जाने के बाद।
3) उम्र बीती सबके फ़ल्सफ़े सुनते सुनते, रात बीती हैं गैरों के सपने बुनते बुनते ,
आज आलम तन्हाई का इस कदर कायम है पाराश, की शहर में अक इंसा नहीं हाल सुनाने को।
4) रात बीती कल इस कश्म काश में "पराश ", की किस बात पे उसने मुझे गैर बताया होगा ,
हम आज भी वही हैं उसी हालात में, उसने दुसरे शहर आशियाँ कैसे बसाया होगा।
5) उसको बेवफा कहना मेरी वफ़ा पे लानत है "पराश ",
वो जुदा हुआ है किसी का साथ निभाने के लिए
6) उससे शिकवा नहीं किसी बात का "पराश", गिला भी हम नहीं रखते हैं ,
बात इतनी सी है की वो लौटा क्यों, जब जाने की वजह साथ लाया था।
7) खुद को तलाश रहा हु इस भीड़ में बरसो से पराश , हर एक शख्स में दिखती है मुझे सूरत मेरी।
8) शिकायत कर के भी हासिल यहाँ कुछ हो नहीं पाया ,
बयाँ जो कर रहे थे साबुत, बयाँ वो हो नहीं पाया;
ख़ुदा तो खुद ही क़ाफ़िर है , तो क़ाफ़िर को खुद मानो,
जो मूमिन बन के बैठा है, खुद वो हो नहीं पाया।.
9) एक रोज़ सफ़र का आग़ाज़ था तेरी तलाश में "पराश ", आज बस अंजाम की फिक्र बाक़ी है ,
तू मिला और फिर खो दिया हमने, अब ज़ेहन में बस तेरा ज़िक्र बाकी है।
10) इलज़ाम तेरा था, कटघरे में हम थे ;
जाते जाते उसने मुजरिम , बना दिया पराश।
© 2013 Prashant Srivastav
अब ज़ेहन में बस तेरा ज़िक्र बाकी है .........................,
ReplyDeleteक्या बात!!!!!!
कह के भी मुझे तुम जुदा कर न पाए खुद से,
तेरी शख्सियत में आज भी मेरा "अख्श" बाकी है,
यूँ ह नहीं होता नील जिक्र-इ-यार का,
वो कह गया गया ,
और देख आज बेखुदी में भी उसका "इल्म" बाकी है।
-------बहुत खूब पराश जी।
@ Neeraj Pal..Kya khoob kahi..bus aise he hausla afzaai karte rahiye..ek shuruaat ko anjaam ki talaash hai :)
ReplyDeletewah!!!!
ReplyDeleteMr. blogger really heart touchng.........
VO kehte hain kabhi aur,
ReplyDeletekabhi aur hota nahi,
YE dil bhi to hai
naadan uSke bagair kahin or khota nahi,
ham maangte hain
ek saans,
ek dharkan,
ek nigaah,
Vo kabhi aur keh
jate hain,
par ye kbhi or,
kbhi or hota nahi...
3) उम्र बीती सबके फ़ल्सफ़े सुनते सुनते, रात बीती हैं गैरों के सपने बुनते बुनते ,
ReplyDeleteआज आलम तन्हाई का इस कदर कायम है पाराश, की शहर में अक इंसा नहीं हाल सुनाने को।
And this one literally made me say WOW.